डर


मुझे कोई बद्दुआ लगी है
मैं अपना माज़ी खुरच रहा हूँ
सो अपने रस्ते में आने वाले हसीन लोगों से बच रहा हूँ

मैं उन सभी को उदासियों की जकड़ में अपनी तमाम खुशियों को सौंप देने से रोकता हूँ
औ' सोचता हूँ
अगर कभी इश्क़ करने वाले नहीं मिले तो, मरे मिलेंगे
पर उनकी लाशें नहीं दिखेंगी
वे सब हमारे बगल की दुनिया में मुस्कुराते मिला करेंगे
पर अपने अंदर घुटा करेंगे

मैं चाहता हूँ उन्हें बचा लूं
उन्हें बताऊँ
कि वक्त की तिश्नगी के आगे किसी की आँखें नहीं बचेंगी
किसी बढ़ी हुई नदी के जैसे बहा करेंगी, बहुत बहेंगी

मैं एक अरसे तक ऐसी नदियों में बहने वाला शजर रहा हूँ
मैं खारे पानी का घर रहा हूँ
सो इश्क़ करने से डर रहा हूँ।

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