नदी

नदी
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१-
घर से निकल कर
कभी न लौट पाने का दुःख
समझने के लिए
तुम्हें होना पड़ेगा
एक नदी!

२-
नदियों की निरन्तरता
को बाँध
उनका पड़ाव निर्धारित कर
मनुष्य ने देखा है
ठहरी हुई नदियों को
उसने नहीं देखी
कोई रुकी हुई सभ्यता
और मृत होता जीवन!

३-
नदी बस एक धारा नहीं
इसके विपरीत भी
वो है कुछ इस तरह
कि अपना हक माँगने
तुम्हारी चौखट पर आएगी
और उजाड़ देगी समूचा शहर!

४-
पत्थरों से टकराकर
घाव खाते रहने के बाद भी
तराशने का काम
नहीं छोड़ती नदियाँ!
नदियाँ कितनी ढीठ होती हैं
और मनुष्य कितना संकोची!

५-
तमाम शहरों का ज़हर
पीने के बाद भी
नदियाँ नहीं उगलतीं मृत्यु
वे देती हैं
बदन को कपास
पेट को भूख
और नाव को धाराएं!

६-
नदियाँ बहती रहती हैं
और मिटाती रहती हैं
तुम्हारे कुकर्म
तुम बढ़ते रहते हो और मिटा देते हो
नदियों के निशान
बस यही फर्क है तुममें और नदी में!

७-
नदियाँ!
अपनी धाराओं में बँटी हैं
लोगों से पटी हैं
सभ्यताओं से अटी हैं
आस्थाओं में घटी हैं.

नदियाँ,
जिनसे कस्बों और शहरों को चैन है
नदियाँ,
जो अपनी मुक्ति के लिए बेचैन हैं!

८-
बरसों बरस लगते हैं
नदियों को नाव तक आने में
और उससे कुछ कम
नाव के नदी तक जाने में

फिर कुछ मिनटों में ही
कैसे पार हो जाती है नदी
किससे पूछूं
कौन बताएगा
नदी की इस सहजता का रहस्य।

- Shivam Chaubey

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