पुकार!
हे मृत होती मानवीय सभ्यताओं आओ!
आओ पिघला दो मेरे कानों में शीशे का ढेर
आओ और झोंक दो मेरी आँखों में मन भर लाल मिर्च
अपने साथ लाओ मिट्टी का तेल और जला दो तमाम किताबें
छापेखानों में जड़ दो तमाम ताले
जो लिख रहे हैं उनके हाथों को तेजाब में डुबो दो
जो बोल रहे हैं उनको चटा दो साइनाइड
जो ईमान से काम कर रहे हैं उनके मस्तिष्क में डाल दो झुण्ड के झुण्ड कनखजूरे
जो देख रहे हैं ख़्वाब उन्हें नींद न आने की गोलियां दो
जो चलना चाहते हैं उनके रास्ते में गाड़ दो लोहे की छड़ें
मानवता के गर्भ से गिरी हुई दरिद्र सभ्यताओं आओ
और नोच खाओ अपने अपने हिस्से के जंगल नदी पहाड़ मनुष्य स्त्री और बच्चे
फिर तुम ही रहोगे अपने होने की लाचारी पर अट्टहास करते हुए
तुम ही बोलोगे और सुनोगे भी तुम!
लेकिन उससे पहले मुझे मार दो और फिर हत्या बलात्कार बर्बरता और पशुता की तमाम हदें पार करो!
आओ तुम्हारा स्वागत है
धर्म के रक्षकों ने बिछा रखी है कालीन और हाथों में माइक थाम तुम्हारे प्रशस्ति गीत गा रहे हैं
आओ और इनको पनाह दो अपने अनचाहे गर्भ में!
- शिवम
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