ग़ज़ल

माज़ी का हाथ थाम ले और तब्सिरा करे
जिसको न आये नींद बताओ वो क्या करे

इक फ़िल्म कोई देख ले कुछ गुनगुना भी ले
फिर ऊब जाए आप से घर में चला करे

चक्कर लगा लगा के बहुत थक चुकी हैं ये
घड़ियों को इनकी क़ैद से कोई रिहा करे

इतने अज़ाब तो किसी दुश्मन पे भी न हों
ख़्वाबों से खौफ़ खाने लगे, रतजगा करे

जंगल को छोड़कर गए ताइर को क्या पड़ी
जंगल में कोई पेड़ गिरा है....गिरा करे

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