सावनदुर्गा - ऊँचे ऊंट की पीठ ऊँची
लगभग यही वक्त रहा होगा जब अलार्म से मेरी नींद खुली थी साढ़े चार के आस-पास। हॉस्टल के बाहर कुछ कुछ हलचल सुनाई दे रही थी। बाहर के मौसम में ठंड और हल्की बूंदा-बांदी थी। ये दिसम्बर का महीना था और बैंगलोर की ठंढ वैसी ही थी जैसी हमारे यहाँ आते या जाते हुए पड़ती है। मुझे उठे हुए करीब बीस मिनट हो चुके थे। मैं फ्रेश होकर तैयार हो गया और करीब पाँच बजे मैं कमरे से बाहर था। ये इंदिरा नगर का पॉश इलाका था जहाँ मैं बैंगलोर के शायद सबसे सस्ते, सुरक्षित और आरामदायक कमरे में 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से टिका था।
कमरे से इंदिरा नगर मेट्रो की दूरी लगभग एक किलोमीटर थी और मुझे 6 बजे की मेट्रो के लिए वहाँ पहुँचना था। बीच में थोड़ा वक्त था जिसे कॉफ़ी के हवाले करना ठीक लगा। इस इलाके में एक बात जो कई जगहों पर दिखी वो ये थी कि यहाँ कॉफ़ी बनाने के लिए कॉफ़ी मशीन की ज़रूरत नहीं पड़ती। एक पतीले में उबलता हुआ कॉफ़ी का काला पानी और एक में उबलता दूध। दोनों के निश्चित अनुपात में कॉफ़ी तैयार। चाय का भी छोटे छोटे तमाम कैफ़े में यही तरीका है। पहली बार इस तरह की चाय मैंने दिल्ली में जामा मस्जिद के नीचे वाली बाज़ार में पी थी।
6 बजने से पहले पहले मैं इंदिरा मेट्रो स्टेशन पहुँच गया। बैंगलोर में मेट्रो का नाम 'नम्मा मेट्रो' है। नम्मा का अर्थ हमारा या हमारी से लिया जाता है। मुझे पर्पल लाइन पे ही मैजिस्टिक तक जाना था जो कि ग्रीन और पर्पल लाइन को जोड़ने का काम करता है। मैजिस्टिक का ही दूसरा नाम है कैम्पेगौड़ा मेट्रो, जिसका दरवाज़ा कैम्पेगौड़ा रोडवेज़ की तरफ खुलता है जहाँ से बैंगलोर से सटे दूसरे शहरों और राज्यों के लिए बस की सुविधा उपलब्ध है। ये काफ़ी बड़ा बस अड्डा है। जहाँ जानकारी न होने पर कुछ देर के लिए गुम भी हुआ जा सकता है और बसों को खोजने में दिक्कत हो सकती है। कारण यहाँ सिटी बसों को छोड़कर बाकी आसपास के गाँवों की तरफ जाने वाली बसों पर जगहों के नाम बस कन्नड़ में ही लिखे हैं और बस चालकों को भी हिंदी या अंग्रेजी न समझ आने पर अपनी बात समझाने में थोड़ी मुश्किल पेश आती है।
मेट्रो से बाहर निकलते निकलते करीब सात बज गए बाहर आकर मुझे मगाडी या सावनदुर्गा जाने वाली बस का पता लगाना था। कई चालकों से पूछने के बाद भी मुझे उनकी बात समझ नहीं आयी। वो सावनदुर्गा को श्रावणदुर्गा बोल रहे थे। और बस इतनी बात मेरे पल्ले पड़ रही थी। ख़ैर जैसे तैसे एक आदमी मिला जिसने बताया कि वहाँ से मगाडी जाने के लिए मगाडी रोड जाना पड़ेगा, उसने एक बस की तरफ़ इशारा भी किया और मैं उसका शुक्रिया कहकर बस में चढ़ गया।
आठ बजे चुके थे और धूप भी बाकी लोगों की तरह अपने काम पर आ गयी थी। करीब आधे घंटे इंतज़ार करने के बाद मुझे एक बस मिली जिससे मुझे मगाडी बस अड्डे तक जाना था। यदि आप बस की बजाय ओला या अपनी बाइक से सावन दुर्गा जाते हैं तो आपको काफ़ी आसानी होगी लेकिन मेरे पास ये दोनों ही ऑप्शन नहीं थे। मेरे पास समय था और मैं इंतज़ार करने में माहिर। बस आयी और मैं मगाडी की तरफ बढ़ने लगा। बैंगलोर से सावनदुर्गा लगभग साठ किलोमीटर की दूरी पर है। शहर से बाहर निकलते ही पहाड़ दिखाई देने लगे और रास्ता सुंदर लगने लगा। तकरीबन डेढ़ घंटे बाद मैं मगाडी पहुँचा। सवा दस का वक्त रहा होगा। आगे मगाडी से रामनगर रोड पर करीब 10 किलो मीटर और जाना था। इस बीच पेट पूजा करना ज़रूरी लगा। कुछ ही देर में वहाँ से राम नगर की तरफ़ जाने वाली बस में मैंने नायकनपल्या तक की टिकट ले ली। जो सावनदुर्गा का करीबी बस स्टॉप था। यहाँ से आगे बस रामनगर की तरफ जाती है।हाँ! वही शोले वाला राम नगर।
नायकनपल्या हर तरफ़ पहाड़ों से घिरा एक छोटा सा गाँव है जहाँ कुछ एक दुकानें और कुछ कुछ दूरी पर बने घर हैं। यहाँ उतर के मैंने कुछ ज़रूरी स्नैक्स और पानी की बोतलें रख लीं जो कि सबसे ज़रूरी थीं। यहाँ से सावन दुर्गा का ट्रैकिंग पॉइंट करीब चार किलो मीटर था। यहाँ एक मजेदार बात ये हुई कि दुकान वाले ने बताया कि श्री लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर थोड़ी ही दूर पर है। और धूप की वजह से मैंने मैप पे 4 किलोमीटर को 400 मीटर समझ लिया और पैदल पैदल ही चलने लगा। लेकिन जब एक किलोमीटर चलने के बाद भी वो जगह नहीं आयी तो वापस मैप पर देखा तब समझ आया कि अभी रास्ता लम्बा है। कुछ दूर चलने पर एक ऑटो आती हुई मिली जिसे जाना तो कहीं और था लेकिन उसने मेरा लगभग दो-ढाई किलोमीटर चलना बचा लिया। और करीब साढ़े ग्यारह बजते बजते मैं उस पहाड़ के बिल्कुल करीब था जिसे मैं नापने आया था। दोनों तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ एक पक्का रास्ता, हर तरफ पेड़ ही पेड़ लोग इतने कम कि किसी और दुनिया का भरम होने लगा था। वहाँ से थोड़ी दूरी पर ही एक तरफ था श्री लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामी मंदिर जिसके करीब से जंगलों का एक कच्चा रास्ता उस जगह तक पहुँचता है जहाँ से सावन दुर्गा की चढ़ाई शुरू होती है।
क्रमशः ....
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