तुम्हारे बाद

सोचता हूँ
तुम्हारे बाद जो नहीं होगा
वो क्या होगा

देखता हूँ
रास्तों पर अचानक से आधे हो गए हैं
क़दमों के निशान
गमलों में फूलों का खिलना थम गया है
रुक गयी है भौंरों की गुंजार
तितलियों के रंग चले गये हैं
खुशियों का हाथ थामे
बाग़ से दूर

देखता हूँ
तुम्हारे बाद
मैं पूरा का पूरा बदल गया हूँ एक ठूंठ में
यकायक मेरी नसों से लुप्त हो गया है हरापन
हवाओं के चलने और बूंदों के गिरने का संगीत चुभने लगा है
चुभने लगा है चिड़ियों का न आना
और मुसाफिरों का बग़ैर देखे चले जाना

देखता हूँ
तुम्हारे बाद
हर चेहरा एक सा लगता है
उगता हुआ दिन समय के टखने में कील जैसा चुभता है
रात के साथ कोई नदी आती है
और पलकों से चिबुक तक जाती है

देखता हूँ
तुम्हारे बाद
तुम नहीं आती
दुख आता है खटखटाता है साँकलें
मन के खुलते ही
भरभराते हुए गिर पड़ती हैं स्मृतियाँ
मुँदी आँखों में कलपता है
कोई दिन, कोई साल, कोई शहर
रह-रह कर।

- Shivam Chaubey

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