बीना अम्मा के नाम

बीना अम्मा के नाम
-------------------------
दिन के दूसरे पहर
जब सो चुका होता दुआरे का शमी
महुए थक जाते किसी बिसाती की बाट जोहते हुए
पोखरे का पानी ठहर जाता गरड़िये के संतोष में
गाय के पास से आती चभर चभर की आवाज़ें रुक जातीं
बाबा काँधे पे गमछा डाल निकल जाते गांव के पुरुब
जब सूरज सजा-बजा रहा होता अपनी दुकान
और सब कुछ ध्यानस्थ आँखों जितना शांत होता

तब अम्मा के गीतों में
सुपेले पर मंजीरे की तरह बजने लगते गेंहू के दाने
"कवन देसवा गइला हो रामा कइके बहाना, कइके बहाना हो
आवा देखा न दुख के बटुलिया भरल बा करेजवा में हो
आवा देखा न...."

गाते हुए अम्मा अलगाती जाती एक एक ढेला
एक-एक खर, एक-एक फूस
जतन से बिच्छती जाती दानें
गेंहू के साथ अम्मा के गीत भी समाते जाते डेहरी के उदर में
अम्मा सुपेले को ढोल की तरह थपकाती,
जैसे सुना रही हो लोरी,
जैसे सुला रही को किसी किसान की थकी आत्मा

लेकिन एक दिन काँपते हाथों से सूप फटकते हुए अम्मा ने जाना
कि सूप फटकते फटकते वो भी बदल गयी है गेंहूँ के दानों में
उसकी कोठरी में भी पसर गया है डेहरी जितना अँधेरा
उसे भीतर भीतर ही चाले डाल रही हैं संतानें
बेटे ने अलगा दिया है उसे, उसके ही तरीके से
कोठरी का सामान बाँट दिया गया है पच्छू टोला की लड़कियों में
और बनाया जा रहा मेहमानों के रहने का कमरा
गाड़ी जा रहीं बल्लियां, बनाया जा रहा गारा
उठायी जा रहीं बगैर नींव की दीवारें

तुष्ट हैं सब सिवाय डेहरी और सूप के

डेहरी की वर्जनाओं को तोड़ते हुए आर्त स्वरों में रो रहे हैं गीत
पछाड़ खा गिर रहे सुपेले की गोद में,
गूँज रहे हैं
शमी में, पोखर में, गरड़िये की हाँक में, बिसाती की पुकार
और गाय की जुगाली में भी बिलख रहे हैं गीत
'कवन देसवा गइला हो रामा, कइके बहाना हो... आवा देखा न..."

इन सबके बीच
चुप है अम्मा
देख रही है चुप चाप
अपने ही बुने हुए सुपेले से
अपना ही निर्वासन।

Comments

Popular Posts