गृहयुद्ध!
जो दूरदर्शी हुए
उनसे नहीं देखे गये
अपनी आँखों के काले गड्ढे
जो बहुत दूर चले
उन्हें नहीं याद रहे
अपने घर के रास्ते
जो बहुत ऊँचे उठे
उनके नीचे दरक गयीं
खुद के लिए निर्मित दीवारें
जो बहुत बोले
उनसे अपने लोगों ने
बोलना बंद कर दिया
और इस तरह
वे स्वयं से स्वयं की लड़ाई में मारे गए।
© shivam chaubey
Comments
Post a Comment