क्या है रेल!
रेल
खट खट करती चली गयी
और सूने प्लेटफॉर्म पर छोड़ गयी थोड़ी गर्माहट थोड़े स्पंदन
रेल एक जादू है
आती है और सैकड़ों लोग
गायब हो जाते हैं!
गाँवों से गुज़रती है तो आज भी कौतूहल होती है
छोटे बच्चों के हिलते हाथों का जवाब पों की आवाज़ से देती है
नदियों से गुजरती है तो ख़ुशी में हिल उठता है पानी
जंगलों से गुजरते हुए पूछ लेती है उनका हाल
दुखी होती है कल ही काटे गए पेड़ों के लिए,
गायब हुए हिरन और न लौटे परिंदों के लिए
शहरों से गुजरती है तो बीमार लोगों को देख जी भर उठता है उसका
इसके इतर रेल उन लोगों के लिए भी कुछ है
जिनकी नसों में खून की जगह बहने लगी है ऊब
जिनकी जिंदगी और न ढोने वाले बोझ जैसी हो गई है
जो इतने अकेले हैं इतने कि कुचले जाने पर भी आवाज नहीं करते
उनके लिए भी रेल कुछ तो है
क्या है रेल... जादू, त्रास, दवा...
या कुछ और।
© Shivam chaubey
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