बंदूकें

बंदूकें
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१-
जिसके भी हाथ में जातीं
बदल देती उसकी पहचान
दुनिया की कहानियों में
बदल देतीं उसकी जगह

बंदूकें जो बनने से नष्ट होने तक
पड़ी रहीं हाथों में ही
कितना कुछ बदल दिया उन्होंने
वहीं पड़े पड़े!

२-
बच्चों के हाथ रहीं
तो खिलौना बन गयीं
सयानों के हाथ पड़ीं
तो मृत्यु साबित हुईं

मजलूमों के हाथों में गयीं
तो जंगल, नदी, खेत
और घर बन गयीं

आतताइयों के हाथ जाते ही
अफवाहों की तरह
निगल गयीं पूरा का पूरा शहर!

३-
बच्चे मेले से लाए उन्हें
और बना लिया उन्हें अपना दोस्त
फिर एक दिन जब
तड़तड़ाहट की असंख्य आवाजों के साथ
हिल गया पूरा क़स्बा
चिड़िया छोड़ के उड़ गयीं अपना पेड़
ठीक उसी वक्त बच्चे
अपने पिताओं की टूटी रक्ताभ घड़ियाँ उठाये
चीखकर धिक्कार रहे थे खुद को
बंदूकों का दोस्त बन जाने के लिए!

४-
लोहार ने ही दी उन्हें कठोरता
लोहार ने ही दिया अपना रंग
लोहार ने ही दी अपने हिस्से की निर्भीकता
अपने हिस्से की टंकार भरी उनमें
और अपने हिस्से का संघर्ष भी सौंप दिया उनको
लेकिन! लोहार ने तो नहीं दिया उन्हें
गरीब भूखे लोगों की जान लेने का प्रशिक्षण

शायद बिक जाने के बाद बन्दूकों ने सीख लिया
बहुत कुछ...!

५-
मामा! मामा! बन्दूक दिलाओ न...
मामा ने उसे दिला दी बन्दूक
उसके किर्र...किर्र...और फट...फट... से
बच्चा भगाता था बन्दर और उड़ जाते थे पंक्षी
आज पच्चीस साल बाद
लड़का भगाता है आदमी और उड़ जाते हैं उसके परखच्चे।

© shivam chaubey

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