बेटे की इच्छा

जैसे दिन के साथ साथ आती है तीखी धूप
जूतों के साथ कभी कभार आ जाती है मिट्टी
जैसे बादलों के साथ घरों में आ जाती है सीलन
जैसे ज्वार के साथ साथ आती हैं मछलियाँ
ठीक वैसे ही
हम पाँच भी इसी तरह आये थे
एक बेटे की इच्छा की प्रक्रिया में

घर में कोई भी माँ को प्यार नहीं करता था
सब एक बेटे की इच्छा को प्यार करते थे
पिता साल भर बाद जब लौटते तो वे भी बेटे की इच्छा से ही सहवास करते
उनके पास माँ नहीं सोती, बस बेटे की इच्छा ही सोती

हमने बचपन में ही देखा था
कि कैसे एक भरी पूरी औरत
बड़े जतन से बदल दी जाती है
एक बेटे की इच्छा में
अपनी पहचान को मिटाते हुए।

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